जय श्री बाबा लाल जी,
मानव के मन के विकास की कोई सीमा नहीं है, जिस प्रकार प्रकाश एक सेकंड में एक लाख छयासी हज़ार मील की गति से निरंतर गतिमय रहता है उसी प्रकार से मन भी जाग्रत व् स्वप्न अवस्थाओं में निहित रहता है, यही मन यदि भगवान शिव की और अनन्य गति से बड़े तो परम सौभाग्य का कारण बन सकता है मन जितना निर्मल होगा इसका संकल्प उतना ही प्रभावशाली होगा और संकल्प से सिद्धि का मार्ग सहज ही पा लेगा, संत कृपा यहाँ परम सहायक कही गई है, सच्चे संतो की संगत मन को विशुद्ध गति प्रदान करती है, मन की विशुद्ध गति से जीव स्वयं को माया पाश से सहज ही मुक्त कर सकता है,
जय श्री सत गुरु बाबा लाल दयाल जी,
मानव के मन के विकास की कोई सीमा नहीं है, जिस प्रकार प्रकाश एक सेकंड में एक लाख छयासी हज़ार मील की गति से निरंतर गतिमय रहता है उसी प्रकार से मन भी जाग्रत व् स्वप्न अवस्थाओं में निहित रहता है, यही मन यदि भगवान शिव की और अनन्य गति से बड़े तो परम सौभाग्य का कारण बन सकता है मन जितना निर्मल होगा इसका संकल्प उतना ही प्रभावशाली होगा और संकल्प से सिद्धि का मार्ग सहज ही पा लेगा, संत कृपा यहाँ परम सहायक कही गई है, सच्चे संतो की संगत मन को विशुद्ध गति प्रदान करती है, मन की विशुद्ध गति से जीव स्वयं को माया पाश से सहज ही मुक्त कर सकता है,
जय श्री सत गुरु बाबा लाल दयाल जी,